मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

भारत का राज्यपत्र
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय
(स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग)
शुद्धिपत्र
नई दिल्ली,२८ नवम्बर , २००८
का. आ.२८१४(अ).:- भारत सरकार , स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के दीनांक, २९ सितम्बर २००८, को अधिसूचना सं. सा.का.नि.६९३(अ) में भारत के राज्यपत्र, असाधारण के भाग -२, खंड-३, उपखंड-१ में प्रकाशित सिगरेट और अन्य तम्बाखू उत्पाद [ पैकेजिंग और लेबलिंग (संशोदन)] नियमावली २००८ .

नियम २ (ई) के स्थान पर निम्नलिखित को रखा जाएगा.
नामतः:-
“ उपनियम (च) के स्थान पर निम्नलिखित को रखा जाएगा.
नामतः:-
(च). विनिर्दिष्ट चेतावानिया डिब्बे पर लिखी भाषा / भाषाओं में दी जायेगी.:-
बशर्ते की डिब्बे पर एक से अधिक भाषा/ भाषाओँ का प्रयोग किए जाने पर विनिर्दिष्ट चेतावनी दो भाषाओं में छपेगी – एक जिसमें ब्रांड नाम छापा हो और दूसरा कोई भी अन्य भाषा होगी जिसका प्रयोग डिब्बे पर किया गया हो.”
[सं. पी.-१६०११/०७/२००५ पी. एच.]
बी. के. प्रसाद सैयुक्त सचिव
टिप्पणी:- मूल नियम सं. सा. का. नि. १८२(अ), दीनांक १५ मार्च, २००८ के तहत प्रकाशित किए गए थे।




भारत का राज्यपत्र
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय
(स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग)
अधिसूचना
नई दिल्ली,२८ नवम्बर , २००८
का. आ.२८१५(अ).:- केन्द्र सरकार दीनांक २७ अगस्त , २००८ की अधिसूचना सं. का. आ.२१३०(अ). के अधिक्रमण में, एतद्द्वारा मई, २००९ के ३१वे दिन को (३१ तारीख को) उस तिथि के रूप में अधिसूचित कराती है जिस तिथि को दीनांक १५ मार्च,२००८ की सं. सा. का. नी. १८२(अ) के तहत अधिसूचित सिगरेट अवं अन्य तम्बाखू उत्पाद [ पैकेजिंग और लेबलिंग] नियमावली, २००८ लागू की जायेगी.

[ स. पी.-१६०११/१/२००५ पी.एच.]
बी. के. प्रसाद सैयुक्त सचिव

बुधवार, 8 अक्तूबर 2008

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार अभी तक विश्व में bhookon की संख्या ७.५ करोड़ है और यदि अनाज के दामों की यह बढ़त जारी रही तो यह संख्या बढ़कर ९२.२५ करोड़ हो सकती है. भारत भी इसी कठिन परिस्तिथि से गुजर रहा है जहाँ गरीबों को bhuke पेट सोना पड़ता है.लेकिन इस कठिन समय में जब देश सरकार की तरफ से कुछ सख्त एवं सार्थक कदम की उम्मीद कर रहा है तब वह यह कहकर अपना बचाव कर रही है की यह एक वैश्विक समस्या है श्व के ३० से भी अधिक देशो को प्रभावित किया है,जिसमे से कई देशों ने भोजन के लिए दंगे भी देखे हैं. वे इस विपत्ति के मूल कारणों का पता लगाने तथा लोगों के सामने उनका खुलासा करने में जरा भी रूचि नही रखते. यद्यपि महंगाई निरंतर बढती जा रही है और पूरे देश में अनाज की उपलब्धता के सम्बन्ध में कई सवाल खाधे हो रहे हैं परन्तु हमारी सरकार अब भी यही मानती है की विश्व अर्थव्यवस्था में अपना स्थान कायम रखने के लिए कारपोरेट कंपनियों का निवेश और समर्थन ज़रूरी है. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद् ने भी कारपोरेट सेक्टर का पक्ष लेते हुए यह कहा है की कृषि ग डी प में गैर अनाज उत्पादक क्रियाओं जैसे वाणिज्य फसलें, बागवानी का ज्यादा योगदान है. परिषद् ने आगे यह सलाह दी है की अनाज की खरीद और सार्वजनिक वितरण प्रणाली से सम्बंधित सभी सब्सिडी हटा दी जाए जिस से कृषि छेत्र में कारपोरेट फार्मिंग द्वारा प्राइवेट सेक्टर के लिए जगह बनाई जा सके. यह सभी सिफारिशे वर्ल्ड बैंक और उ स अ को खुश करने के लिए की गयी थी.



विभिन्न बड़ी अनाज कंपनियों के लिए भारतीय बाज़ार का रास्ता आसन बनाना के उद्देश्य से भारत सरकार ने जानबूझकर तथा एक सुनियोजित ढंग से अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कमज़ोर किया. इसके लिए सरकार ने अनाज (मुख्या रूप से गेहूं) की खरीद कम कर दी.इस स्तिथि का फायदा उठाते हुए वर्ष २००५-०७ में कई मुलती नेशनल कंपनियों जैसे कारगिल इंडिया, थे आस्ट्रेलियन व्हेअत बोर्ड,भारतीय कंपनियाँ जैसे इ टी क और अदानी समूह जिन्होंने कुल ३० लाख तोंने गेहूं खरीदा जबकि इसकी तुलना में सरकार का आंकडा महज ९.२ मिलियन तोंने गेहूं ही रहा. इस कारणवश भारत में ऐसे कई परिवार जो गरीबी रेखा से निचे जीवन गुजर रहे हैं, उन्हें अब दो वक्त की रोटी भी नही मिलती क्यूंकि जो मूल्य कंपनियों ने निर्धारित किए थे वह उन गरीबों की पहुच से बहार थे. इससे मांग- पूर्ति अनुपात बिगड़ गया तथा पुरे देश में खाद्य असुरक्षा की स्तिथि फ़ैल गयी.



खाद्य एवं कृषि संगठन के सहायक महानिदेशक हफेज़ घानेम ने दो मुख्या बैटन पर ज़ोर दिया है.पहला, विश्व के गरीब देशों को अनाज उपलब्ध करना.दूसरा, छोटे किसानों को अनाज उत्पादकता बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना. अब वक्त आ गया है जब भारतीय सरकार को यह समझना चाहिए की छोटे एवं सीमान्त किसान जो इन उदार नीतियों से बुरी तरह प्रभावित हुए है, दरअसल उन्ही के हाथों में इस मुश्किल की चाभी है. भारत में कृषि का ज्यादातर हिस्सा इन छोटे और सीमान्त किसानो का है, इसलिए हमारी सरकार को इन्हे बढावा देना चाहिए.इसके साथ ही साथ कृषि छेत्र पूरी तरह से सरकार द्वारा चलाया जन चाहिए,निवेश से लेकर मार्केटिंग और वितरण तक.यहाँ तक की यदि किसी भी तरह का कारपोरेट निवेश हो तो उसका भी नियमन सरकारी अधिकारीयों द्वारा किया jaana हिए.

सोमवार, 5 मई 2008

मशीनीकरण की तरफ़ बढ़ता फसल कटाई का काम

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और भारतीय अर्थव्यवस्था में, विशेषकर गंगा यमुना के मैदानी कृषि व्यवस्था में गेहूं और चावल की फसलें और उनका उत्पादन प्रमुख है। धान और गेंहूँ के उत्पादन की प्रक्रिया पूर्वी उत्तर प्रदेश के फसल चक्र की प्रमुख विशेषता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में फसलों का यह चक्र हजारों परिवारों को न केवल आजीविका का साधन उपलब्ध करवाता है बल्कि साथ ही इस छेत्र की खाद्य सुरक्षा का भी प्रमुख श्रोत है।

पिछले कुछ वर्षों से इस फसल चक्र की सम्पूर्ण प्रक्रिया में एक तरह की स्थिरता आई है जो धानऔर गेहूं के उत्पादन में गिरावट का गंभीर संकेत देती है। इस गिरावट के कई कारन हैं जिसमे जल संसाधन में गिरावट, पोषक तत्वों की कमी अत्यधिक उर्जा की खपत, मिटटी के स्वास्थ्य में गिरावट तथा अन्यं पर्यवार्नियें समस्याएँ रही हैं। अभी हाल ही में इस सम्बन्ध में फसल अवशेषों का खेत के भीतर जलाया जन तथा कटाई की मशीनीकरण की पधती मूल रूप से चर्चा में रही हैं। क्योंकि खेती में बढ़ता मशीनीकरण तथा उससे जुड़ी प्रक्रियाएं परोक्ष तथा अपरोक्ष रूप से जहाँ जलवायु परिवर्तन के कारकों को मदद दे रही है। वहीं वह आर्थिक रूप से किसानों के लिए भी लाभप्रद साबित नही हो रही है। किसान रासायनिक खेती तथा जलवायु परिवर्तन के कारणों से त्रस्त हैं । इस सम्बन्ध में हाल ही में गोरखपुर एन्विओरेन्मेन्तल् एक्शन ग्रुप द्वारा किसानों के बीच कराये गए एक सर्वेक्षण की खेती में फसलों की कटाई से संबंधित मशीनीकरण से कितना लाभ और हानि है। क्या फसलों की कटाई मैं मशीनों का अपनायाजना लाभप्रद है।

इस सर्वेक्षण से पता चलता है की मशीन द्वारा धन की कटाई मानव द्वारा की जाने वाली कटाई से ४७५ रूपये प्रति एकड़ महंगी है। मशीन द्वारा धन की कटाई का एक नकारात्मक पक्ष यह भी है की इसमें प्रति हेक्टेयर लगभग ९ कुंतल चारे का नुकसान होता है। मशीन द्वारा कटाई से विशिस्थ रूप से कार्बन, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर तथा मिटटी के अन्दर बक्तेरिया की मात्र घटती है तथा मिटटी के स्वास्थ्य में गिरावट आती है।

इस अध्ययन के दौरान यह देखा गया की गेहूं और धान की बुवाई का कुल परीछेत्र जो क्रमश: १८०७४२ तथा १३९२६० हेक्टेयर था में कम्बाइन मशीन के द्वारे गेहूं और धान की कटाई का कुल छेत्र क्रमश:३१ तथा ३७ प्रतिशत का रहा। फसलों के अवशेस जलने से गेहूं तथा धान के खेतों की नमी में ५० प्रतिशत की गिरावट आई है। धान की मशीन द्वारा की जाने वाली कटाई मानव द्वारा की जाने वाली कटाई से काफी महंगा है। सर्वेक्षण बताता है की प्रति एकड़ में मशीन द्वारा की जाने वाली कटाई से १७२५ रूपये की लगत आती है वही मानव द्वारा की जाने वाली कटाई से मात्र १२५० रूपये लगत आती है। अर्थात मशीन द्वारा की जाने वाली कटाई से ४७५ रूपये महंगी है। मशीन द्वारा धान की कटाई का एक नकारात्मक पक्ष यह भी है की इसमें प्रति हेक्टेयर लगभग ९ कुंतल चारे का नुकसान होता है। लेकिन सवाल यह है की आख़िर यह जानते हुए की मशीन द्वारा कटाई मानव द्वारा की जाने वाली कटाई से महंगी होते हुए भी किसान मशीनीकरणकी तरफ़ कयूं बढ़ रहें हैं। इस सम्बन्ध में पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बड़े किसान का कहना है की " मशीनों द्वारा की वाली जाने वाली कटाई अधिक सुविधा जनक तथा सरल है। इसमे समय भी कम लगता है, अक्सर मजदूर कटाई के वक्त मिलते नही और ज्यादा देर करने पर फसलों के बारिश या फिर पत्थर गिरने पर पुरी तरह से नष्ट होने की सम्भावना बनी रहती है। इन
सभी समस्यों का चलते किसान यहाँ तक की छोटे किसान मशीनी कटाई की तरफ़ बढ़ रहे हैं। ऐसा भी नही है की किसान अपनी साडी फसल मशीन द्वारा जी कटवाता है। वह कुछ फसलों को भूसे इत्यादी के रूप में बचा कर रखता है। अंततः सरकार और किसान दोनों को मानव कटाई की तरफ ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है।








रविवार, 4 मई 2008

अस्थमा नियंत्रण ज्यादातर देशों में अशफल

विश्व अस्थमा दिवस (६ मई, २००८):
अस्थमा नियंत्रण ज्यादातर देशों में अशफल है
विश्व के लगभग ३० करोर लोग अस्थमा की समस्या से ग्रसित हैं! अस्थमा की बीमारी व्यक्तिगत, पारिवारिक, तथा सामुदायिक तीनो स्तरों पर लोगों को प्रभावित करता है।
वश्विक स्तर पर अस्थमा की समस्या पर प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक वश्विक स्तर पर अस्थमा नियंत्रण कार्यक्रम विभिन्न बाधाओं के चलते फ़ैल रहें हैं। किंतु यदि हम अस्थमा नियंत्रण और इसके प्रवंधन पर ध्यान दे तो इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। अपर्याप्त अस्थमा नियंत्रण कार्यक्रम की वजह से लोगों की जीवन शैली में परिवर्तन देखें जा सकते हैं। उदाहरण के लिए विश्व के काये सारे चेत्रों में प्रत्येक चार में से एक अस्थमा ग्रसित बच्चा स्कूल नही जा सकता है।
इस बार के विश्व अस्थमा दिवस का विषय है " आप अस्थमा पर नियंत्रण पा सकतें हैं"। इस थीम द्वारा यह बात साफ तौर पर जाहिर होती है की अस्थमा के रोकथाम का असरकारी उपचार की विधियाँ मौजूद हैं जरुरत है इसके सहीजांच जागरूकता और उपचार की।
अस्थमा नियंत्रण और प्रबंधन की वैशिक निति २००७ के मुताबिक अस्थमा नियंत्रण का मतलब है की व्यक्ति जिसको की जरा सा भी अस्थमा है उसको रात को नहीं टहलना चाहिए।
- अस्थमा राहत दवा का थोड़ा सा उपयोग करना चाहिये
- यदि व्यक्ति सामान्य शारीरिक काम कर सकता है।
- कभी नहीं या कभी- कभी जिसको अस्थमा की शिकायत हो

कुछ लोग जो की अस्थमा से ग्रसित हैं उन लोगों ने कभी भी पर्याप्त अस्थमा की जांच नही करवाई है, इस वजह से उनमें अस्थमा के उपचार और उचित नियंत्रण की सम्भावना कम हो जाती है। अस्थमा के पर्याप्त और सही समय पर जांच न हो पाने की कई साडी वजहें हैं। जैसे: मरीजों में इसके बारें में पर्याप्त जानकारी न होना, स्वय्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा सही समय पर इसके पहचान न कर पाना और चिकित्सा व्यवस्था तक लोगों की व्यापक पहुँच न हो पाना इत्यादी
विश्व के कई सारे देशों जैसे: मध्य पूर्व, मध्य अमरीका, दक्षिण एशिया, उत्तर पश्चिम और पूर्व अफ्रीका इत्यादी देशों में दवाओं के अनुप्लाभ्दाता अस्थमा की स्तिथि को और भी गंभीर बना देतें हैं। इसकी साथ की साक्ष्य आधारित निर्देशों के अनुसार लोगों को लगातार दवायों न मिल पाना भी अस्थमा नियंत्रण को कमजोर बना देता है।
विश्व के कई देशों में ऐसे लोग जो अस्थमा से ग्रसित हैं वह वताबरण में व्याप्त प्रदुशअन जैसे सिगरेट का धुवाँ घर के अन्दर और बाहर पर्दुषित हवा आदि तथा रसायन इत्यादी से और भी बुरी स्तिथि में जा सकतें हैं।
यदि हम अस्थमा नियंत्रण को प्रभावी बनाना चाहतें हैं तो हम सभी को इसकी प्रवाभी नियंत्रण के लिए व्यापक और प्रभावकारी निति बनानी होगी।















शनिवार, 26 अप्रैल 2008

क्या तम्बाकू की कंपनी आज आ रही

अमित का कहना है की हम यहाँ पर नही आ रहें हैं