सोमवार, 5 मई 2008

मशीनीकरण की तरफ़ बढ़ता फसल कटाई का काम

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और भारतीय अर्थव्यवस्था में, विशेषकर गंगा यमुना के मैदानी कृषि व्यवस्था में गेहूं और चावल की फसलें और उनका उत्पादन प्रमुख है। धान और गेंहूँ के उत्पादन की प्रक्रिया पूर्वी उत्तर प्रदेश के फसल चक्र की प्रमुख विशेषता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में फसलों का यह चक्र हजारों परिवारों को न केवल आजीविका का साधन उपलब्ध करवाता है बल्कि साथ ही इस छेत्र की खाद्य सुरक्षा का भी प्रमुख श्रोत है।

पिछले कुछ वर्षों से इस फसल चक्र की सम्पूर्ण प्रक्रिया में एक तरह की स्थिरता आई है जो धानऔर गेहूं के उत्पादन में गिरावट का गंभीर संकेत देती है। इस गिरावट के कई कारन हैं जिसमे जल संसाधन में गिरावट, पोषक तत्वों की कमी अत्यधिक उर्जा की खपत, मिटटी के स्वास्थ्य में गिरावट तथा अन्यं पर्यवार्नियें समस्याएँ रही हैं। अभी हाल ही में इस सम्बन्ध में फसल अवशेषों का खेत के भीतर जलाया जन तथा कटाई की मशीनीकरण की पधती मूल रूप से चर्चा में रही हैं। क्योंकि खेती में बढ़ता मशीनीकरण तथा उससे जुड़ी प्रक्रियाएं परोक्ष तथा अपरोक्ष रूप से जहाँ जलवायु परिवर्तन के कारकों को मदद दे रही है। वहीं वह आर्थिक रूप से किसानों के लिए भी लाभप्रद साबित नही हो रही है। किसान रासायनिक खेती तथा जलवायु परिवर्तन के कारणों से त्रस्त हैं । इस सम्बन्ध में हाल ही में गोरखपुर एन्विओरेन्मेन्तल् एक्शन ग्रुप द्वारा किसानों के बीच कराये गए एक सर्वेक्षण की खेती में फसलों की कटाई से संबंधित मशीनीकरण से कितना लाभ और हानि है। क्या फसलों की कटाई मैं मशीनों का अपनायाजना लाभप्रद है।

इस सर्वेक्षण से पता चलता है की मशीन द्वारा धन की कटाई मानव द्वारा की जाने वाली कटाई से ४७५ रूपये प्रति एकड़ महंगी है। मशीन द्वारा धन की कटाई का एक नकारात्मक पक्ष यह भी है की इसमें प्रति हेक्टेयर लगभग ९ कुंतल चारे का नुकसान होता है। मशीन द्वारा कटाई से विशिस्थ रूप से कार्बन, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर तथा मिटटी के अन्दर बक्तेरिया की मात्र घटती है तथा मिटटी के स्वास्थ्य में गिरावट आती है।

इस अध्ययन के दौरान यह देखा गया की गेहूं और धान की बुवाई का कुल परीछेत्र जो क्रमश: १८०७४२ तथा १३९२६० हेक्टेयर था में कम्बाइन मशीन के द्वारे गेहूं और धान की कटाई का कुल छेत्र क्रमश:३१ तथा ३७ प्रतिशत का रहा। फसलों के अवशेस जलने से गेहूं तथा धान के खेतों की नमी में ५० प्रतिशत की गिरावट आई है। धान की मशीन द्वारा की जाने वाली कटाई मानव द्वारा की जाने वाली कटाई से काफी महंगा है। सर्वेक्षण बताता है की प्रति एकड़ में मशीन द्वारा की जाने वाली कटाई से १७२५ रूपये की लगत आती है वही मानव द्वारा की जाने वाली कटाई से मात्र १२५० रूपये लगत आती है। अर्थात मशीन द्वारा की जाने वाली कटाई से ४७५ रूपये महंगी है। मशीन द्वारा धान की कटाई का एक नकारात्मक पक्ष यह भी है की इसमें प्रति हेक्टेयर लगभग ९ कुंतल चारे का नुकसान होता है। लेकिन सवाल यह है की आख़िर यह जानते हुए की मशीन द्वारा कटाई मानव द्वारा की जाने वाली कटाई से महंगी होते हुए भी किसान मशीनीकरणकी तरफ़ कयूं बढ़ रहें हैं। इस सम्बन्ध में पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बड़े किसान का कहना है की " मशीनों द्वारा की वाली जाने वाली कटाई अधिक सुविधा जनक तथा सरल है। इसमे समय भी कम लगता है, अक्सर मजदूर कटाई के वक्त मिलते नही और ज्यादा देर करने पर फसलों के बारिश या फिर पत्थर गिरने पर पुरी तरह से नष्ट होने की सम्भावना बनी रहती है। इन
सभी समस्यों का चलते किसान यहाँ तक की छोटे किसान मशीनी कटाई की तरफ़ बढ़ रहे हैं। ऐसा भी नही है की किसान अपनी साडी फसल मशीन द्वारा जी कटवाता है। वह कुछ फसलों को भूसे इत्यादी के रूप में बचा कर रखता है। अंततः सरकार और किसान दोनों को मानव कटाई की तरफ ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है।








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